कभी संभले तो कभी बिखरते आये हम;
जिंदगी के हर मोड़ पर खुद में सिमटते आये हम;
यूँ तो जमाना कभी खरीद नहीं सकता हमें;
मगर प्यार के दो लफ्जो में सदा बिकते आये हम;
तेरे प्यार मे दो पल की ज़िंदगी बहुत है,
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एक पल की हँसी और एक पल की खुशी बहुत है,
ये दुनिया मुझे जाने या ना जाने,
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तेरी आँखे मूज़े पहचाने यही बहुत है...
मुझे किसी कि ज़रूरत नहीं … सिवाए तेरे
मेरी नज़र को तलाश जिसकी बरसों से … किसी के पास वो सूरत नहीं … सिवाए तेरे
जो मेरे दिल और ज़िन्दगी से खेल सके …. किसी को इतनी इजाजत नहीं … सिवाए…
ये मत कहना कि तेरी याद से रिश्ता नहीं रखा,
मैं खुद तन्हा रहा मगर दिल को तन्हा नहीं रखा,
तुम्हारी चाहतों के फूल तो महफूज़ रखे हैं,
तुम्हारी नफरतों की पीर को ज़िंदा नहीं रखा।